Thursday, 30 July 2020

शिक्षादान ( लघुकथा )

*शिक्षादान* (लघुकथा )
         शादी के बाद रुचि को पति के साथ मुंबई आना पड़ा । उसे अपनी चार वर्ष की नौकरी छोड़नी पड़ी , यह बात उसे बहुत पीड़ा दे रही थी । पति के ऑफिस चले जाने के बाद वह बहुत   बोर होती , पहले  उसकी कितनी व्यस्त दिनचर्या रहती थी । एक दिन उसके पड़ोस में रहने वाली चाची अपनी बेटी प्रिया को लेकर आई जिसे अपनी पढ़ाई में कुछ समस्या आ रही थी । रुचि ने उसे कुछ दिन पढ़ाया , प्रिया को उसके पढ़ाने की शैली पसंद आई और उसने आगे भी पढ़ाने के लिए रुचि  से निवेदन किया । प्रिया की दो - तीन सहेलियाँ भी पढ़ने आने लगी थीं । रुचि को अपनी शिक्षा सार्थक लगने लगी थी । शिक्षित होने की अंतिम परिणति सिर्फ नौकरी ही क्यों ? थोड़ा ही सही पर समाज को वह अपना योगदान तो दे रही थी । शिक्षादान करके उसे अत्यंत सन्तुष्टि और आनन्द की प्राप्ति हो रही थी  ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

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