Friday, 3 July 2020

कुमायूं डायरी

दुर्ग से 31 मई  को सुबह सात बजे हम लोग दुर्ग - हजरत निजामुद्दीन हमसफ़र एक्सप्रेस में बैठे और  1 जून सुबह 4.30 बजे हजरत निजामुद्दीन स्टेशन में उतरे । हल्दवानी के लिए हमारी ट्रेन नई दिल्ली स्टेशन  से थी तो तुरंत ही हमें टैक्सी के द्वारा वहाँ जाना पड़ा । सुबह साढ़े पाँच बजे ही दिल्ली के ट्रैफिक जाम का सामना स्टेशन पर करना पड़ा और स्टेशन से कुछ दूर पहले ही  टैक्सी छोड़कर अपना सामान लेकर हम पैदल ही चल पड़े ।नई दिल्ली से  सुबह छः बजे हम शताब्दी एक्सप्रेस में  हल्दवानी के लिए निकल पड़े । ट्रेन में नाश्ता, चाय ,कोल्ड ड्रिंक्स वगैरह के द्वारा शानदार मेहमानवाजी की गई ।  सुबह साढ़े दस बजे हम लाल कुंआ स्टेशन में उतरे । वहाँ हमारे परिचित गिरीश जी हमें लेने आये थे ।  उनके परिवार के  साथ बिताया वह एक दिन उनकी मेहमानवाजी के नाम रहा । उन्होंने बहुत ही खुशी के साथ हमारा स्वागत सत्कार किया । हमारी ननद गीता ने एक दिन में ही पहाड़ की सारी खूबियों से हमारा परिचय करा दिया । वहाँ के फल खुबानी , आड़ू , आम ,वहाँ की स्पेशल दाल व खाना का आनंद लिया हमने । पहाड़ों का सौंदर्य दर्शन करने से पहले हमने वहाँ के लोगों के खूबसूरत दिलों  का सौंदर्य दर्शन किया जो अपनेपन और प्यार से लबरेज़ था । वो ही  नहीं उनका पूरा परिवार हमसे बड़ी प्रसन्नता से मिला मानों हम कब से परिचित हों । उन चेहरों में कोई अजनबियत नहीं थी बल्कि मिलने की ललक थी , ढेर सारा लगाव था । शाम को हम गीता की बड़ी बहन उमा दीदी के घर गये जहाँ से हम खाना खाकर  स्नेहाभिभूत होकर वापस लौटे । गिरीश जी ने न सिर्फ  हमारे लिए टैक्सी की व्यवस्था कर दी थी , बल्कि पूरी यात्रा की योजना बना दी थी कि हमें क्या क्या देखना है , किस रूट  से जाना है इत्यादि क्योंकि वे वहीं के रहने वाले हैं सारे महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थलों की सूची उन्होंने हमें दे दी थी । चूँकि यह बहुत भीड़ वाला सीजन था तो उन्होंने सभी जगह होटल भी बुक कर दिया था । इससे बड़ी सुविधा और क्या चाहिए, हम निश्चिंत होकर यात्रा पर निकल पड़े । दो जून की सुबह गीता के हाथों की बनी स्वादिष्ट पूरी सब्जी खाकर हम हल्दवानी से पहाड़ों के लिए निकले और हमारी रोमांचक यात्रा प्रारंभ हुई ।
        
      हल्दवानी से कुछ दूर आगे बढ़ने के साथ ही पहाड़ों के दर्शन प्रारंभ हो गये.. हरे - भरे पेड़ों युक्त ऊँचे - ऊँचे पहाड़ मानो आसमान से बातें कर रहे हों । सर्पिलाकार सड़कों और उनके कई खतरनाक मोड़  को देख कर हम सांस रोक लेते थे कि अब क्या होगा लेकिन ड्राइवर किसी कुशल मदारी की तरह आसानी से उन स्थितियों से गाड़ी बाहर निकाल ले जाते थे । प्रकृति की खूबसूरती यहाँ वहाँ छिटकी पड़ी थी जो आँखों को बाँध लेती थी । एक तरफ ऊँचे पहाड़ तो दूसरी ओर गहरी खाई ...जिंदगी के उतार - चढ़ाव का सच बयान करते नजर आ रहे थे । पहाड़ों के साथ चलती चौड़ी पहाड़ी नदी दृश्यों को मनोरम बना रही थी । स्थानीय ड्राइवर के द्वारा अनेक पहाड़ी फलों व पेड़ों के बारे में हमें ढेर सारी जानकारी मिली । काफल तोड़ कर खाये जो छोटे बेर की तरह दिखते थे पर रसदार थे । नासपाती के पेड़ की हरेक शाखाओं को छोटे - छोटे फलों से लदा हुआ देखना सुन्दर अनुभव रहा..काश ! ये थोड़े और बड़े होते तो अपने हाथों से तोड़कर इन्हें खाना और भी मजेदार होता । हरे - हरे आड़ू के फल छोटे पेड़ों पर फले हुए थे  । तरह - तरह के पहाड़ी फूल पहाड़ों के सौंदर्य में वृद्धि कर रहे थे ,  साथ ही समीर की शीतलता चेहरे के साथ मन को भी  स्निग्ध किये जा रही थी । खूबसूरत नजारों ने आँखों को बाँध सा लिया था और हम मंत्रमुग्ध हो यहाँ-  वहाँ नजरें फिराते रहे ।
        रानीखेत के रास्ते में पड़ा भवाली जहाँ अंग्रेजों के जमाने का बना  हुआ  एक T. B. Sanitorium  मिला
क्योंकि यहाँ चीड़ों के घने जंगल हैं । कहा जाता है कि चीड़ के फूलों की खुशबू से टी. बी. के मरीज अपने आप ठीक हो जाते थे । मुझे लगता है आधी बीमारी तो यहाँ की खूबसूरती व
मनभावन दृश्य को देखकर ही दूर हो जाती होगी ।
चीड़ के ऊँचे पेड़ मानो आसमान में  झाँकने का प्रयास कर रहे हों , उनके साथ बादल भी लुकाछिपी का खेल खेल रहे थे । कभी बगल में , कभी ऊपर तो कभी उनसे गलबहियाँ लगते हुए  ...घुमावदार रास्तों , घाटियों के बीच कैंचीधाम मंदिर पड़ा जो नीमकरौरी बाबा का समाधिस्थल है । नदी पर बने पुल के उस पार यह स्थल अत्यंत आकर्षक व मनोरम है और लोगों की आस्था का प्रतीक है ।  उनकी मूर्ति जीवंत सी लग रही थी ।  रास्ते में नदी पर बने लौह ब्रिज  पर जाकर नदी व पहाड़ का विहंगम  दृश्य  देखनाा अद्भुत था । यहाँ पर  एडवेंचर के प्रेेमी

 के लिये नदी के आर - पार तार बाँध कर उन्हें स्लाइड कराया जा रहा था ।     
           

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