Sunday, 19 July 2020

दोहे ( किसान )

किसान
पीड़ा उसका भाग्य  है ,  सदा रहा कंगाल ।
सूखे ने  मारा उसे ,   किसान है बदहाल  ।। 

रातों को वह जागता , करता  दिन भर काम ।
मेहनतकश  किसान  को , कभी नहीं आराम ।।

  सूखी रोटी है भली , करे न उल्टे काज ।
 कल के लिए कुछ भी नहीं , जो कुछ है वह आज ।।

जीवन के संग्राम का , योद्धा बना किसान  ।
धरती का है लाल वह ,  माँ भारती की शान ।।

खेतों में अन्न उगा रहा   ,  खाली पेट  किसान ।
जरूरतें  पूरी  नहीं ,   खत्म हो गए धान ।।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़


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