पीड़ा उसका भाग्य है , सदा रहा कंगाल ।
सूखे ने मारा उसे , किसान है बदहाल ।।
रातों को वह जागता , करता दिन भर काम ।
मेहनतकश किसान को , कभी नहीं आराम ।।
सूखी रोटी है भली , करे न उल्टे काज ।
कल के लिए कुछ भी नहीं , जो कुछ है वह आज ।।
जीवन के संग्राम का , योद्धा बना किसान ।
धरती का है लाल वह , माँ भारती की शान ।।
खेतों में अन्न उगा रहा , खाली पेट किसान ।
जरूरतें पूरी नहीं , खत्म हो गए धान ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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