आसमान में उड़ते बादलों की तरह भाव मेरे मन में उमड़ते -घुमड़ते रहते हैं , मैं प्यासी धरा की तरह बेचैन रहती हूँ जब तक उन्हें पन्नों में उतार न लूँ !
Sunday, 19 July 2020
नुस्खा ( लघुकथा)
शाम को घूमने निकले श्रीवास्तव जी का मन उदास और कदम शिथिल थे । पत्नी के न होने की कमी आज बेइंतहा महसूस हो रही थी । बेटे - बहू पर बहुत अधिक निर्भर कभी नहीं हुए वो बल्कि अपनी तरफ से उन्हें स्वतंत्र ही रखा , रिश्तों में संतुलन बनाने की कोशिश की । आज एक सामान्य प्रश्न के जवाब में बहू झल्ला पड़ी थी , पहली बार बेरुखी से पेश आई थी । बस वही बातें उन्हें व्यथित कर रही थीं । पार्क में बैठकर बहुत देर तक सोचते रहे , बहू नौकरी व घर की जिम्मेदारी में संतुलन बनाये रखती है , बच्चों की देखभाल करती है हो सकता है आज उसकी तबीयत ठीक न हो या ऑफिस में कुछ गलत होने पर उसका मूड खराब हो । इस सोच ने उनका मन हल्का कर दिया और लौटते वक्त वह उसके लिए पानीपुरी पैक करवा कर ले आये थे । बहू की आँखें खुशी से चमक उठी थी पानीपुरी के तीखे स्वाद ने ऑंखों के साथ दिलों में नमी ला दी थी " बाबूजी ! मैंने किसी और बात का गुस्सा आप पर उतार दिया था आप मुझे माफ़ कर देंगे न । " गुस्से का इलाज सिर्फ प्यार ही हो सकता है , श्रीवास्तव जी का नुस्खा काम कर गया था ।
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