Saturday, 18 July 2020

मुक्तक , गीत समीक्षा ( भाव पक्ष )



भाव हैं , संवेदना हैं  , अर्थ व्यंजना का प्रवाह है ।
परिष्कृत भाषा शैली , व्याकरण का निर्वाह है ।।
अभिधा है , व्यंजना है , अनुपम शब्द प्रयोग है ।
सूक्ष्म का स्थूल से , देह का आत्मा से योग है ।।
उपमेय  उपमान  है  , नवीन शब्द  - विधान है , 
सौंदर्य अनुपमेय है ,भावों का विस्तृत वितान है ।।

साधना ही मानव को महान बनाती है ,
नैतिकता मनुष्य को इंसान बनाती है ।
हृदय- भावों को कलुषित नहीं होने देना_
श्रद्धा ही पत्थर को भगवान बनाती है ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग ,छत्तीसगढ़

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