भाव हैं , संवेदना हैं , अर्थ व्यंजना का प्रवाह है ।
परिष्कृत भाषा शैली , व्याकरण का निर्वाह है ।।
अभिधा है , व्यंजना है , अनुपम शब्द प्रयोग है ।
सूक्ष्म का स्थूल से , देह का आत्मा से योग है ।।
उपमेय उपमान है , नवीन शब्द - विधान है ,
सौंदर्य अनुपमेय है ,भावों का विस्तृत वितान है ।।
साधना ही मानव को महान बनाती है ,
नैतिकता मनुष्य को इंसान बनाती है ।
हृदय- भावों को कलुषित नहीं होने देना_
श्रद्धा ही पत्थर को भगवान बनाती है ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग ,छत्तीसगढ़
No comments:
Post a Comment