धकधक बोलय मोर जिवरा तें सम्भार लेबे न ।
कुहू - कुहू कुहूकय कोयलिया , मन के अमराई म ।
छन - छन छनकय पायलिया , पीरा के गहराई म ।
डूबत हंव मया के तरिया म , तें उबार लेबे न ।।
बईमानी के जरी फैले हे , लबारी के चिखला म ,
छल छिद्दर के फर लगे हे , जिनगी के रुख्वा म ।
दुनिया काजर के कोठरी , तें उजियार देबे न ।।
लड़थे भाई ले भाई , टूटय रिश्ता व्यवहार म ,
बेटी नइहे इहाँ सुरक्षित , अपनेच घर - दुवार म ।
बिगड़े हे दुनिया के रीत तें सुधार देबे न ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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