राज की अपनी सहकर्मी नेहा से बिल्कुल नहीं जमती थी , अकड़ू , घमंडी इत्यादि उपनामों से कई बार सुशोभित किया था उसे । नेहा की भी राज के बारे में यही राय थी कि वह अपने आपको तीसमार खान समझता है जैसे उससे होशियार दुनिया में कोई और है ही नहीं । सच भी था कि राज अपने कार्य में एक्सपर्ट था । पिछले कई वर्षों से देख रही थी नेहा ,राज पूरे वर्ष अपनी बहन की राखी नहीं उतारता था । राखी के दिन ही पुरानी राखी तोड़कर नई बंधवाता था । इस बार उसने नई राखी नहीं बाँधी थी ,वही पुरानी राखी पहने घूम रहा था तो नेहा ने उसे सुना दिया " इस बार दीदी से लड़ लिया क्या लड़ाकू तभी दीदी ने राखी नहीं भेजी "। हमेशा बहस करनेवाले राज की आँखें नम हो गई और वह बिना कुछ कहे चुपचाप वहाँ से चला गया । उसके दोस्त निहार ने बताया कि राज की बहन का निधन हो गया है । नेहा को अपने बर्ताव पर बहुत पछतावा हुआ । वह ऑफिस में सबके सामने जोर से रोने लगी और राज से माफी माँगने लगी । उसने अपने बैग से राखी निकाली और राज की कलाई पर बाँधते हुए बोली - "अब यह कलाई कभी खाली नहीं रहेगी , यह अकड़ू बहन चलेगी न । "
राज ने हँसते हुए कहा - "सोच लो , फिर तो तुम्हें डाँटने का कॉपीराइट मिल जाएगा मुझे "। " चलेगा ..भाई - बहन के प्यार में लड़ाई तो चलता है, इस लिहाज से पहले ही हम भाई बहन बन चुके हैं ,है ना.." दोनों की आँखों से खुशी के आँसू झर रहे थे ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग ,छत्तीसगढ़
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