Sunday, 19 July 2020

जिंदादिली का नाम है जिंदगी

मेरे एक परिचित हैं द्विवेदी जी , बहुत ही जिंदादिल इंसान ...हमेशा हँसते - मुस्कुराते ही मिलेंगे । उनके बेटे से मालूम हुआ कि उनके लगभग पाँच ऑपरेशन हो चुके हैं और उन्हें बहुत सारी शारीरिक परेशानियाँ हैं । उन्हें मैंने कभी भी अपनी तकलीफों का रोना रोते हुए नहीं देखा । सब कुछ भूलकर वे सिर्फ खुश रहने की बातें करते हैं । पूछने पर कहते हैं शिकायत करने से क्या होगा ? जो होना है वो तो होकर रहेगा , उसके लिए अभी से दुखी क्यों होना । अपने वर्तमान को खुशी से जी रहा हूँ  , भविष्य में क्या होगा यह सोचकर दुखी क्यों होना । सच ही तो कहते हैं वे , हम अपने वर्तमान को हमेशा भूलकर भविष्य या अतीत के बारे में सोच - सोचकर दुखी होते रहते हैं । जो बीत गया अब उसका दुख क्या करना और भविष्य हमारे हाथ में नहीं है , कल क्या होगा कोई नहीं कह सकता ।  आज जो हमारे पास है वही सच्ची दौलत है  । परेशानियों से लड़कर आगे बढ़ने में ही भलाई है न कि अपने दुखों के बारे में सोचने में ।  किसी ने सच ही कहा है " जिंदगी जिंदादिली का नाम है मुर्दादिल क्या खाक जिया करते हैं " । तो चलिए अपने जीवन में आने वाली कठिनाई को चुनौती देकर सफलता प्राप्त करने का प्रयास करते हैं , जिंदगी को नये सिरे से जीने की शुरुआत करते हैं । उस हँसते- खिलखिलाते बच्चे की तरह जिसे न आने वाले कल की चिंता है और न कुछ खोने की । जो एक खेल जीतकर खुश हो जाता है या बारिश में भीगकर । खुशी की कोई शर्त नहीं है , कोई सीमा नहीं है , कोई बंधन नहीं है ...बस , दिल से बच्चे हो जाएं ..मन से सच्चे हो जायें ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग ,छत्तीसगढ़

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