वर्ण 32 / 888 8 पर यति
कहीं सूखा कहीं बाढ़ , कहीं बरसे असाढ़ ,
कितने पावस तेरे , हैं रूप और विधान ।
नजरें गड़ाए बैठे , आसरा लगाए बैठे ,
सूखे खेत देखकर , परेशान हैं किसान ।
बाढ़ में मवेशी बहे , घर टूटे गाँव छूटे ,
गलियों में पानी भरे , नदियों में है उफान ।
कहीं बीज सूख रहे , कहीं लोग बह रहे ,
अपना ही कर्मफल , भुगत रहा इंसान ।
बार - बार यही रोना , पड़े कब तक खोना ,
छोड़ो बातचीत अब , ढूँढो कोई समाधान ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग ,छत्तीसगढ़
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