Sunday, 19 July 2020

अस्मत (मुक्तक )

#अस्मत पर आये कोई आंच गवारा नहीं हमको ,
झूठ जो ढक ले सांच  वो प्यारा नहीं हमको ।
खेल जायेंगे जान पर  बचाने अपनी इज्जत -
भूलकर भी समझना नाकारा नहीं हमको ।

गुल ही नहीं तुम्हें खार में भी खिलना होगा ,
वक्त के साथ खुद को भी बदलना होगा ।
खेल न सके कोई # अस्मत से तुम्हारी_
जरूरत पड़े तो आग में भी चलना होगा ।

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