Friday, 3 July 2020

गजल

दिल पर लिखा नाम रोज पढता हूँ मैं ,
रेत की देह पर  पर किले गढ़ता हूँ मैं ।

तू आये न आये तेरी खुशबू आ गई ,
संग होने के खयाल से महकता हूँ मैं ।

चलते- चलते मुझे तेरे दुपट्टे ने छू लिया ,
 शबाब के इंतखाब से बहकता हूँ  मैं ।

तुझे छूकर जो हवा घुल गई है साँसों में ,
बाहों में लेने के एहसास से मचलता हूँ मैं ।

खुद को जला दुनिया में उजाला करने ,
तेरे इश्क की आँच में पिघलता हूँ मैं ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़






No comments:

Post a Comment