समां त - अह
पदांत - जाती
मात्राभार - 26
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अपने बच्चे की खातिर माँ सब दुःख सह जाती
पीड़ा मत हो बच्चे को सोचकर चुप रह जाती
आँखों में बाँधे रखती है लड़ियाँ पीड़ा की
स्नेहमयी निर्झरिणी वह सुख - दुःख में बह जाती
बाधाओं के आगे अड़ जाती पर्वत बन
अंतस जब चोटिल हो कच्ची दीवार* ढह जाती
वात्सल्य भाव से भरी हुई छलकती गागर है
होठों ने जो नहीं कहा आँखे सब कह जाती
एक ताबीज में भर देती है अपनी दुआएँ
स्वर्ग बन जाती वह धरती माँ जिस जगह जाती
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स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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