Friday, 3 July 2020

स्वाभिमान ( लघुकथा )

  स्वाभिमान (लघुकथा)
   "   सुधा तुम अब तक तैयार नहीं हुई , हमें डॉक्टर के पास जाना है न ! " सुधा के पति सुनील ने ऑफिस से आते ही आवाज लगाई । " हाँ मैं तैयार हूँ सुनील , पर डॉक्टर के पास जाने के लिए नहीं , तुम्हें छोड़ने के लिए । बस , अब और नहीं ...पिछली बार जो कुछ भी हुआ मुझे धोखे में रखकर हुआ । अब इस बार मैं न तो अपना लिङ्ग परीक्षण कराऊँगी और न ही बेटी होने पर उसे मारने दूँगी ।" सुधा के तेवर देखकर सुनील सकते में आ गया था ,आगे कुछ भी कहने की उसकी हिम्मत नहीं हुई । अपने साहस के द्वारा सुधा ने एक स्त्री के स्वाभिमान की रक्षा कर ली थी ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

No comments:

Post a Comment