शिवशक्ति संग कैलाश विराजे त्रिपुरारी हैं ।
सहज भक्ति में खुश हो कर ,कहलाते आशुतोष_
भुजंग गले में हार लिए भोले - भंडारी हैं ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग ,छत्तीसगढ़
शीशे सा दिल है जरा देखभाल कर रखना ,
शब्दों के नश्तर कभी न निकाल कर रखना ।
गहरे होते हैं मन के घाव ,भरते नहीं ये _
बातों का लहजा जरा संभाल कर रखना ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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