इनसान तैं हर कहाँ जाबे ।
दया धरम ल छोड़ देबे त ,
भगवान ल कहाँ ले पाबे ।।
धन - दौलत कमाय बर ,
तैं अपन जमीर ल मारे ।
सुख - साधन ल पाय बर ,
खेत खलिहान ल बेच डारे ।
के दिन उड़बे अगास मा ,
भुईएच म आके थिराबे ।।
अन्टी म पइसा हे त ,
कतको सगा संगवारी ।
आन तान मन हितैसी बनगे ,
छुटगे बाप भाई महतारी ।
कोख ल भले बिसा ले ,
दाई के मया दुलार कहाँ लाबे ।।
कतको तरक्की कर ले बाबू ,
फेर मौत ल नई जीत पाये ।
अकाल , बाढ़ , महामारी म ,
तैं थर थर कांपे ,थर्राए ।
जा बिधाता के सरन मा ,
ओखरे आघु मुड़ी नवाबे ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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