शिथिल सी उषा रानी है ।
छींटे शबनम शीतल झोंके ,
तृण के मुख पर पानी है ।
यह भोर बड़ी सुहानी है ।।
कलियों की मादक खुशबू से ,
लता हुई दीवानी है ।
पेड़ों को कर के आलिंगन ,
चली राह अनजानी है ।
यह भोर बड़ी सुहानी है ।।
नन्हें रवि की बोझिल पलकें ,
चूनर धरा की धानी है ।
कगार पर सोये क्षितिज ने ,
नीली चादर तानी है ।
यह भोर बड़ी सुहानी है ।।
कलरव कर रहे खगवृन्द ने ,
कही अपनी कहानी है ।
घूँघट खोले जब कलियों ने
एहसास यह रूहानी है ।
यह भोर बड़ी सुहानी है ।।
सूखे पीले पत्ते छोड़े ,
पल्लव नई उगानी है ।
जगती के उठने से पहले ,
रंगोली बिखरानी है ।
यह भोर बड़ी सुहानी है ।।
पत्तों के झुरमुट में छिपकर ,
कूकी कोयल मस्तानी है ।
नया - नया कर देती हर दिन ,
वसुधा बड़ी सयानी है ।
यह भोर बड़ी सुहानी है ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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