Friday, 3 July 2020

भोर ( गीत 7 )

 अलसाये  बादल लगते हैं ,
 शिथिल सी उषा रानी है ।
 छींटे शबनम शीतल झोंके ,
 तृण के मुख पर पानी है  ।
यह भोर बड़ी सुहानी है ।।

कलियों की मादक  खुशबू  से ,
लता हुई दीवानी है ।
पेड़ों  को कर के आलिंगन ,
चली  राह अनजानी है ।
यह भोर बड़ी सुहानी है ।।

नन्हें  रवि की बोझिल पलकें ,
चूनर धरा की  धानी है ।
कगार पर सोये क्षितिज ने ,
नीली चादर तानी है ।
यह भोर बड़ी सुहानी है ।।

कलरव कर रहे खगवृन्द ने ,
 कही अपनी कहानी है ।
घूँघट खोले जब कलियों ने 
 एहसास यह रूहानी है ।
यह भोर बड़ी सुहानी है ।।

सूखे  पीले पत्ते छोड़े ,
पल्लव नई उगानी है ।
जगती के उठने से पहले ,
 रंगोली बिखरानी  है ।
यह भोर बड़ी सुहानी है ।।

पत्तों के झुरमुट में छिपकर ,
कूकी कोयल मस्तानी है ।
नया - नया कर देती हर दिन ,
वसुधा बड़ी सयानी है ।
यह भोर बड़ी सुहानी है ।।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

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