Thursday, 16 July 2020

गीत 5

गीत

आतप के प्रचंड प्रभाव ने ,
तन - मन को झुलसाया है ।
प्यास बुझाने वसुंधरा की ,
रिमझिम पावस आया है ।

वसुधा ने है चूनर ओढ़ी ,
पल्लव के मुख हरियाली  ।
सद्यस्नाता हैं पात - पात ,
तृण के मुख मोती आली ।
फूट पड़ा अंकुर बीजों से ,
किसलय बन मुस्काया है ।।


छलक उठी हैं नदियाँ निर्झर ,
बोल उठे हैं दादुर  मोर ।
फूट पड़ा उत्साह सभी का,
नहीं खुशी का कोई  छोर ।
बूँदों जैसे थिरक उठा मन ,
जन-जीवन हरषाया है ।।


माटी की सोंधी खुशबू ने ,
घोला साँसों में चंदन ।
चंचल होने लगे हैं भ्रमर ,
कलरव करते खग वंदन  ।
किया भोर ने है अभिवादन ,
संध्या - दीप जलाया है ।।

 भीग उठा धरती का कण- कण  ,
 सुरभित शीतल हुआ  पवन ।
कर्मवीर चल पड़े काम पर ,
उमगित पुलकित है तन-मन ।
बाट जोहते नैनों में अब ,
मेह खुशी का छाया है ।
प्यास बुझाने इस धरती की ,
रिमझिम पावस आया है ।।

डॉ. दीक्षा चौबे








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