गीत
आतप के प्रचंड प्रभाव ने ,
तन - मन को झुलसाया है ।
प्यास बुझाने वसुंधरा की ,
रिमझिम पावस आया है ।
वसुधा ने है चूनर ओढ़ी ,
पल्लव के मुख हरियाली ।
सद्यस्नाता हैं पात - पात ,
तृण के मुख मोती आली ।
फूट पड़ा अंकुर बीजों से ,
किसलय बन मुस्काया है ।।
छलक उठी हैं नदियाँ निर्झर ,
बोल उठे हैं दादुर मोर ।
फूट पड़ा उत्साह सभी का,
नहीं खुशी का कोई छोर ।
बूँदों जैसे थिरक उठा मन ,
जन-जीवन हरषाया है ।।
माटी की सोंधी खुशबू ने ,
घोला साँसों में चंदन ।
चंचल होने लगे हैं भ्रमर ,
कलरव करते खग वंदन ।
किया भोर ने है अभिवादन ,
संध्या - दीप जलाया है ।।
भीग उठा धरती का कण- कण ,
सुरभित शीतल हुआ पवन ।
कर्मवीर चल पड़े काम पर ,
उमगित पुलकित है तन-मन ।
बाट जोहते नैनों में अब ,
मेह खुशी का छाया है ।
प्यास बुझाने इस धरती की ,
रिमझिम पावस आया है ।।
डॉ. दीक्षा चौबे
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