जो खूबसूरत फूल ,
आज उनकी पंखुड़ियाँ
धरा पर टूटकर बिखरी थीं ,
वही रंगत और महक लिए
कुछ ऐसा ही हमारा रिश्ता
टूटकर भी दे गया ,
खूबसूरत यादें , मीठा एहसास ।
भूल नहीं पाती वो लम्हे
तुम्हारा मुझे प्यार से ताकना ,
रहना दिल के पास ।
माथे पर गिर पड़ी लटों की उठाना
चूमकर मेरा माथा बाहों में कस लेना
ठोढ़ी पकड़कर मेरा चेहरा उठाना ।
लाज से झुकी पलकों को
उठाने की मिन्नतें करना ,
जीवन भर साथ निभाने की कसम खाना ।
ऐतबार किया तुझ पर ,
किया प्रेम पुष्प अर्पण
तुझे चाह कर कुछ न चाहा
किया तन - मन समर्पण
थी मतलब की यारी ,
तुमने निभाई न जिम्मेदारी
मुझसे मुख मोड़ गये
बीच राह में छोड़ गये
पर मैंने तुमसे सच्चा प्यार किया
तुम बिन जीवन क्या जिया
आ जाना जब भी महसूस करो ,
जिंदगी में मेरी कमी
ठहर गई हूँ मैं उसी मोड़ पर
नजरें वहीं थमी
तुम्हारी बाट जोहते
सिर टिकाये घर की दहलीज पर ।
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स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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