सुविचार और सद्भावना अखण्ड हो जाए ।
सिरमौर बनेगा दुनिया का अपना राष्ट्र ही _
हर घर का एक बालक विवेकानंद हो जाए ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग ,छत्तीसगढ़
चंद रुपयों में ही तकदीर यहाँ बिकता है ,
छल की स्याही से अपना इतिहास लिखता है ।
फरेब की नींव पर ओ महल बनाने वालों _
रेत में बना हुआ प्राचीर कहाँ टिकता है ।
थक जाए मजदूर तो जग में क्रंदन हो जाए ,
श्रमवीरों के स्पर्श से मिट्टी चंदन हो जाए ।
अपमानित न करना कभी उस माटीपुत्र को_
उसको मान दिया वसुधा का वंदन हो जाए।।
हाथों के स्पर्श से मिट्टी को कंचन बना देते हैं ,
अथक परिश्रम कर मरु को कानन बना देते हैं ।
वीर शहीदों का लहू जिस भूमि पर गिरता है ,
हर कण को गंगा जल सा पावन बना देते हैं ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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