Sunday, 19 July 2020

गीत 14

बचपन🌹🌹
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सुंदर फूलों के समान ,
कहाँ है मेरा दिल नादान ,
मैं उसको ढूँढ रही हूँ.... मैं उसको ढूँढ रही हूँ ।
न था अच्छे - बुरे का ज्ञान ,
न कोई मान न अपमान ।
मैं उसको ढूँढ रही हूँ.....

भोला - भाला वो बचपन ,
गुड्डे - गुड़ियों का जहान ,
गंगा जल सा था पावन ,
सब दुखों से था अनजान ।
मैं उसको ढूँढ रही हूँ.....

दो उंगली की कट्टी - बट्टी ,
गोलियाँ मीठी और खट्टी ,
भेंट अमिया और इमली की ,
लाती चेहरे पर मुस्कान ।
मैं उसको ढूँढ रही हूँ.....

न कोई बड़ा न कोई छोटा ,
न जाने खरा और खोटा ,
पड़ोसी लगते सब अपने ,
सारे घर थे एक समान ।
मैं उसको ढूँढ रही हूँ....

गर्मी की चाँदनी रातें ,
दादी - नानी की बातें ,
बड़े जो कहते लेते मान ,
मन कोरे कागज के समान ।
मैं उसको ढूँढ रही हूँ...

दिन थे रेशम से हल्के ,
नींदों से बोझिल पलकें ,
सपनों की ऊँची उड़ान ,
रोना - हँसना था आसान ।
मैं उसको ढूँढ रही हूँ.....

रेतों में बीने जो  शंख ,
नाव , पत्थर , लकड़ी , पंख ,
कीमती थे ये सब सामान ,
खुशियाँ मिलती थीं बेदाम ।
मैं उनको ढूँढ रही हूँ.....।।

सुंदर फूलों के समान ,
कहाँ है मेरा दिल नादान ,
चेहरे की निश्छल मुस्कान ,
मन कोरे कागज के समान ।
मैं उसको ढूँढ रही हूँ ....मैं उसको ढूँढ रही हूँ ।।

🌹स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़











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