सौंप उसे दें आप को , यही भक्ति की रीति ।।
जाना है संसार से , ले लो प्रभु का नाम ।
पार करें दुखभार से , बन जाये सब काम ।।
जीना तो ऐसे जियो , जैसे सूरज- चाँद ।
सबको उजास बाँट कर , अंधकार ले बाँध ।।
सागर जल कर्षित करे , बादल बन बरसाय ।
राजा ऐसा चाहिए , लेत न देत अघाय ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
No comments:
Post a Comment