सुनो...
बाबुल का आँगन छोड़कर पिया के घर आने तक न जाने कितने विचार बदली की तरह मन के आसमान में उमड़ - घुमड़ रहे थे । चौबीस वर्ष
तुम्हारे खूबसूरत साथ ने जीवन के इस सफर को भी खूबसूरत और आसान बना दिया है । मुझे वो सब मिला जिसकी मैंने आरजू की थी और वो भी मिला जो मैंने सपने में भी नहीं सोचा था । प्यार और खुशियों से भरपूर घर - संसार ...मेरा भरपूर ख्याल रखने वाले पति और बच्चे... मैं आज अपने जीवन से पूर्णरूपेण सन्तुष्ट हूँ... कहीं कोई असंतोष या दुविधा नहीं है । हाँ.. तुम्हें शायद यह गलतफहमी है कि मैं सन्तुष्ट नहीं । मैं बहुत शिकायतें करती रहती हूँ पर वह ऊपरी ही हैं...अंतर्मन की गहराई में बैठने वाली नहीं हैं । वो शिकायतें करके मैं भूल भी जाती हूँ उन्हें तुम भी दिल में मत रखा करो । अक्सर कई बातों के लिए तुम मुझे चिढ़ाते रहते हो...और मैं चिढ़ जाया करती हूँ , छोटी - छोटी बातों पर । मैं चाहूं तो अपनी यह आदत सुधार सकती हूँ... पर जान - बूझकर नहीं सुधारती क्योंकि मुझे अच्छा लगता है तुम्हारा चिढाना...तुमसे अटेंशन पाना । मैं चिढ़ना बंद कर दूँगी तो तुम चिढाना बंद कर दोगे..न कोई छेड़छाड़ होगी और न रूठना - मनाना । बिना रूठे - मनाये दुनिया बेरंग लगने लगेगी न ! गृहस्थ जीवन को चटपटा और मजेदार बनाने के लिए यह सब जरूरी है है ना । तुम क्या सोचते हो बताना ।
तुम्हारी ही ❤️
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