मध्यप्रदेश के हृदयांचल में स्थित अमरकंटक यूँ तो कई बार जाना हुआ पर शायद अब भी जाने का अवसर मिले तो मैं ना नहीं कह पाऊँगी । नैसर्गिक सौंदर्य से भरपूर अमरकंटक के बड़े - बड़े शिखर मानो अपनी बाहें फैलाकर आमंत्रित करते हों । पेंड्रारोड़ से अमरकंटक का रास्ता सघन वन प्रान्त से होकर जाता है ।हरे - भरे वनों के बीच से गुजरना मन को स्निग्ध ,शीतल एहसास से भर देता है । अपने आसपास घूमते बादल सरई , साल के ऊँचे - ऊँचे पेड़ों की शाखों पर रुककर बातें करते प्रतीत होते हैं । रुई के फाहों से नाजुक बादल पत्तों , वस्तुओं के साथ मन को भी भिगोते चलते हैं । विंध्य और सतपुड़ा पर्वत का मिलन यहाँ होता है जो मेकल पर्वत कहलाता है । मेकल पर्वत की अँजुरी से नर्मदा नदी का पावन जल बहता है और हरियाली से ओत प्रोत करता है ।
यह सोन नद की भी जन्मस्थली है जो सोनमुडा से निकलकर पूर्व में चला जाता है । नर्मदा के ग्यारहकुंडीय उद्गम स्थल के पास बहुत सारे छोटे मंदिर बने हुए हैं । यहाँ अमरेश्वर शिव का मंदिर है जिसके कंठ से नर्मदा निकलकर कुंड में गिरती है । माई की बगिया ऋषि मार्कण्डेय की तपोभूमि भी एक पवित्र और मनोरम स्थल है जो गुलबकावली के फूलों के लिए प्रसिद्ध था । कपिलधारा और दुग्ध धारा जल प्रपात का अनुपम सौंदर्य मनमोहक है । यहाँ भीगे बिना निकलने का मन ही नहीं करता । पहाड़ों, हरे वनों के बीच कल्लोलिनी नर्मदा मानो हाथ पकड़कर अपने करीब बिठा लेती है और कुछ देर और रुकने का मनुहार करती है । बिना बुलाये मेहमान की तरह बारिश यहाँ कब आ जाये कुछ कह नहीं सकते पर यह आकर अमरकंटक के सौंदर्य को द्विगुणित कर देती है । अपनी आँखों से इस नयनाभिराम दृश्य को हृदय में सँजो कर मैं लौट आई पर अब भी उस नैसर्गिक सौंदर्य के दर्शन की प्यास अधूरी ही लगती है ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग ,छत्तीसगढ़
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