अद्भुत उसकी सर्जना , लोचन सुखद अपार ।।
गढ़े विधाता ने यहाँ , भाँति - भाँति के लोग ।
सरस सलिल सरिता बहे , मनुज करे उपभोग ।।
धरती माँ पोषण करे , पर्वत पिता समान ।
विपिन विधाता ने दिए , कर इनका सम्मान ।।
पारस पावन अनल है , शीतल मंद समीर ।
दान विधाता ने दिया , निर्झर निर्मल नीर ।।
गढ़े विधाता ने यहाँ , सुंदर दृश्य अभिराम ।
उपवन सी दुनिया बनी , पावन सुरभित धाम ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग ,छत्तीसगढ़
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