Sunday, 19 July 2020

तन्हाई

मेरी स्वरचित कविता - 
तेरी राह तकते - तकते
फिर आँख भर आईं है...
तारों के संग चाँद 
चल पड़ा है सफर पर...
यादों के गलियारे में घूमते ,
मेरे हिस्से रात  सूनी आई है ।
फिर वही शाम , वही गम ,वही तन्हाई है 
अपनों के छल से आहत मन ,
सन्देह के पत्थर से टूटा...
अनुराग का दर्पण ।
विश्वास भरे हृदय के 
हर टुकड़े में...
तेरी छबि समाई है ।
फिर वही शाम , वही गम , वही तन्हाई है ।।
डॉ. दीक्षा चौबे

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