जीवन-पथ पर चलने की, सही राह दिखलाई है ।
रामकथा लिखकर तुलसी ने , जन-जन तक पहुँचाई है ।।
मात-पिता का मान बढ़ाया , पाठ पढ़ाया संयम का।
वनवास लिया हँसते- हँसते ,वचन निभाया रघुकुल का।
महलों का वैभव त्याग दिया , कुल की रीति निभाई है।।
रामकथा लिखकर.....
शबरी के जूठे बेर चखे, गुहराज-राम मित्र बने ।
उद्धार अहिल्या का करके, अनुकरणीय चरित्र बने।
दैत्यों को यमलोक दिखाया, संतों की पहुनाई है ।
रामकथा लिखकर.....
बाली वध कर शासन भार्या , मित्र सुखद उपहार दिया ।
पत्नी की रक्षा की खातिर , रावण का संहार किया ।
मर्यादित आचरण सिखा कर , राहें नई दिखाई है ।।
रामकथा लिखकर....
पालनहार बने जनता के , दीन-दुखी को अपनाया ।
समरसता का पाठ पढाकर ,जंगल को नगर बनाया ।
राम -राज्य में सुखी रहें सब , राज नीति सिखलाई है ।
रामकथा लिखकर.....
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग ,छत्तीसगढ़
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