मीठे बोल सजाइए , मानवता की आन ।।
साथ दे दुःख में सदा , पीड़ा अपनी मान ।
साथी इस संसार में ,सफल वही इंसान ।।
मानवता का सार है , संयम नियम विधान ।
शुद्व आचार विचार हों , जग का हो कल्याण ।।
बुरे लोग भी हैं यहाँ , करते नित खिलवाड़ ।
कुवृत्ति फैला रहे ले , मानवता की आड़ ।।
तरुवर से पत्ता गिरे , लगे न फिर से डाल ।
मानवता से जो गिरे , क्षमा नहीं चिरकाल ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग ,छत्तीसगढ़
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