शादी के बाद सासूमाँ ने मेरी गृहस्थी जमाने में मदद की । मुझे खाना ,तरह - तरह का नाश्ता बनाना भी सिखाया । इस घर की परंपराओं , रीति - रिवाजों से परिचित कराया , रिश्तों से परिचय कराया ।मुझे तो पहले दिन अलमारी और कपड़ों का ढेर देखकर ही चक्कर आने लगे थे ,समझ ही नहीं आया कि कहाँ क्या जमाऊँ । सासूमाँ और जेठानी की मदद से सब काम किया , फिर धीरे - धीरे सब सीखती गई । आज अपनी ही कार्य - कुशलता पर अचरज होता है । लगभग सभी घरों का यही हाल है , लड़कियों के जीवन के इक्कीस - बाईस वर्ष घर में पढ़ाई करते रहने के कारण , कैरियर बनाने के चक्कर में बीत जाते हैं । समय ही नहीं मिलता कि घर के काम सीखा जाए ,दूसरी बात अपने घर में कोई जिम्मेदारी भी नहीं रहती ।मम्मी के रहते निश्चिंत भी रहते हैं इसलिए शादी के बाद जब यह सब करना पड़ता है तो उन्हें कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है । जीवन की असली चुनौती तो विवाह के पश्चात प्रारम्भ होती है । ससुराल पक्ष को इस सच्चाई को स्वीकारना चाहिए और बहू को सहयोग भरा वातावरण प्रदान करना चाहिए । सास की भूमिका इसमें बहुत महत्वपूर्ण है । लड़कियों को अपनी जिम्मेदारी समझ कर ,सीखने की रुचि भी रखनी चाहिए और सास को माँ की तरह आदर व प्यार देना चाहिए । दोनों के बीच सामंजस्य भरा व्यवहार उनके सुखी जीवन का आधार बनता है । जहाँ इन बातों की कमी होती है वहाँ सास - बहू का एक छत के नीचे रहना मुश्किल हो जाता है। तो अब लड़कियों को ये ताने देने के दिन गये कि तेरी माँ ने कुछ नहीं सिखाया , कहिए तेरी सास ने तुझे कुछ नहीं सिखाया ।
साथियों ! मेरे साथ बने रहने के लिए धन्यवाद 🙏🙏
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग ,छत्तीसगढ़
No comments:
Post a Comment