पदांत - ×
मात्रा भार - 16
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आकर बरसो बादर कारे
सूखी धरा तुम्हें पुकारे
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कोठी हुई खाली अन्न की
कृषक साथी बाट निहारे
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भीग गई यह श्यामल वसुधा
झूमी सृष्टि नीर बरसा रे
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सुवर्णमयी धान की बाली
धानी रंग रंगे नजारे
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आई खुशी फसलों के संग
मस्ती में खिले लोग सारे
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अंधेरों से डरकर न बैठ
राह दिखाने आये तारे
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स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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