तारे ज्यों आकाश में , प्रेम भरा हो गेह ।।
तारों - सा शीतल बनो , जग में भरो उजास ।
घनी छाँह ज्यों पेड़ की ,पंथी को दे आस ।।
मंजिल पाना तुम्हें तो ,राह न रोड़े देख ।
तारों जैसे अटल हो , बाँच भाग्य के लेख ।।
टूटा तारा देखकर , माँग लिया वरदान ।
साथ रहें प्रिय सदा यूँ , तन से निकले प्राण ।।
चाँद सैर पर चल पड़ा , ले तारों की फौज ।
बिखरी शीतल चाँदनी , निशा मनाए मौज ।।
तारे टिमटिम कर रहे , उजियारा आकाश ।
सबका अपना स्थान है , ध्रुव तारा है खास ।।
तारा माँ की आँख का , बेटा गुण की खान ।
अपनी रचना में कमी , ढूँढे कहाँ इंसान ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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