दिल की बातें सुने जो , सच्चा ज्ञानी होय ।।
प्रेम भाव की धार को , मोड़ सके तो मोड़ ।
ज्ञान चाह की राह में , अहंकार को छोड़ ।।
द्वेष , दम्भ को त्याग कर , नेह सुमन तू खिला ।
प्रेम भाव से कर्म कर , ज्ञान धर्म से मिला ।।
विनत रहे जो सदा ही , झुकी रहे ज्यों दूब ।।
आँधी बिगाड़ सके क्या , फले - फूले वह खूब ।।
ज्ञानी ध्यानी गये कह , नशा नाश का मूल ।
गुनी धनी सब गये बह , जाओ इसको भूल ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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