Wednesday, 29 July 2020

मुक्तक

मर्यादित है नीर नदी के तटबंध में ,
पलता है विश्वास प्रेमाकुल सम्बन्ध में ।
प्रेम देना पड़ता है प्रेम पाने के लिए_
रीत की सौगंध है प्रीत के अनुबंध में ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग ,छत्तीसगढ़ 

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