सबकी हँसी उडाय ।
सता रहा कल मुझे था ,
आज हुआ असहाय ।
आज हुआ असहाय ,
दुबक कर बैठा भीतर ।
शांत है धरा - गगन ,
घूमे सड़क पर जानवर ।
मानव- मन अशांत है ,
खुशी से झूमे वानर ।।
डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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