यह जहाँ मेरे लिए है ।
रंग - बिरंगे फूल , पंछी , तितलियाँ ,
यह फ़िजां मेरे लिए है ।
समंदर की लहरें , छल - छल बहती नदियाँ ,
यह समां मेरे लिए है ।
कल - कल करते झरने , ये मोती की लड़ियाँ ,
यह कारवाँ मेरे लिए है ।
सुनहरी उषा अलबेली , बादलों की अठखेलियाँ ,
यह गुलसिताँ मेरे लिए है ।
शांत ,धवल योगी हिमालय ,सम्मोहन करती घाटियाँ ,
यह करिश्मा मेरे लिए है ।
लुटाया प्रकृति ने कोष ,अनुपम सौंदर्य की रश्मियाँ ,
यह कहकशां मेरे लिए है ।
जीते जी देख लिया जन्नत ,क्यों कहूँ कुछ नहीं मेरा ,
सारा जहाँ मेरे लिए है ।
****** स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे **********
दुर्ग ,छत्तीसगढ़
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