Monday, 20 July 2020

गीत 15

गीत ( ताटँक छंद )
16/14 मात्रा $$$
जीवन कौशल सीखा मैंने , खेत और खलिहानों में ।
स्वेद कण यहाँ मोती बनते , श्रमिकों के अवदानों  में ।।

मिट्टी की सोंधी खुशबू है , दिल के भोले - भालों में ।
अहंकार छल दम्भ नहीं है , इनके सरल  सवालों में ।
समरसता है मन में इनके  , हों अपनों बेगानों में ।।
जीवन कौशल सीखा मैंने , खेत और खलिहानों में ।।

सम्मान यहाँ एक - दूजे का  , मिलजुल कर सब रहते हैं।
आपस में कोई भेद नहीं , सुख - दुख साझा करते हैं ।
आगे बढ़ने चाल न चलते  ,  होड़ नहीं नादानों में ।।
जीवन कौशल सीखा मैंने , खेत औऱ खलिहानों में ।।

गाँव मुझे अब भी प्यारा है ,  शोभा यहाँ निराली है ।
मन में कोई खोट नहीं , जेब भले ही खाली  है ।
मन का आँगन बहुत बड़ा है , ममता भरी मचानों  में ।।
जीवन कौशल सीखा मैंने , खेत और खलिहानों में ।।

छोटे - छोटे सपने पलते ,  इनके निश्छल नैनों में ।
मधुरस सी मिठास भरी , इनके देशज बैनों में ।
संस्कारों को जीते हैं ये , परम्परा के गानों में ।।
जीवन कौशल सीखा मैंने , खेत और खलिहानों में ।।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग ,छत्तीसगढ़

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