Friday, 17 July 2020

संस्कार ( लघुकथा )

नीमा का स्वास्थ्य आजकल ठीक नहीं रहता था , घर - नौकरी के बीच संतुलन बनाते हुए बच्चों व बूढ़े  सास - ससुर की देखभाल वह अच्छी तरह नहीं कर पा रही थी । पता नहीं उसके पति नरेश उसकी परीक्षा ले रहे थे या सच में पूछ रहे थे कि नीमा यदि तुम चाहो तो माँ - पिताजी को मैं कुछ दिन दीदी के घर छोड़ आता हूँ । सुनकर नीमा गुस्से से बोली - " यह आप क्या कह रहे हैं ? वे हमारे माता - पिता हैं जिन्होंने अपना सब सुख अपने बच्चों को पालने के लिए त्याग दिया , वे हम पर बोझ नहीं । यदि समस्या का समाधान ढूँढना है तो मैं घर के काम के लिए  नौकर रखने या नौकरी छोड़ने की सोचूँगी पर माता - पिता को छोड़ने की बात कभी नहीं ।" पत्नी की बातें सुनकर नरेश को उसके अच्छे संस्कारों पर गर्व महसूस हुआ और बाहर खड़े उसके माता - पिता  की आँखों में खुशियों के तारे झिलमिला उठे थे ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग ,छत्तीसगढ़

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