क्या थे ऐसे हालात...
बेजान हुए जज्बात ....
झाड़ियों में फेंका नवजात...
जीते -जी माँ को मार गई...
किस मोड़ पे ममता हार गई....
ऐसी क्या थी मजबूरी...
कर ली अपने टुकड़े से दूरी...
रह गई तुम सदा के लिए अधूरी...
जननी तू क्यों लाचार हुई.....
इंसानियत की हार हुई...
किस मोड़ पे ममता हार गई...
तुमने की थी जो गलती...
उस निर्दोष को क्यों सजा दी...
क्यों न थोड़ी हिम्मत की...
वात्सल्य की चुनरी तार -तार हुई...
हाय! मानवता शर्मसार हुई...
किस मोड़ पे ममता हार गई....
धिक्कार तुम्हारी काया को...
लोक - लाज की माया को...
दुनिया में उसे लाया क्यों...
जन्म देकर उससे बेज़ार हुई...
इस कायरता को तैयार हुई...
किस मोड़ पे ममता हार गई....
स्वरचित---डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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