Wednesday, 6 December 2017

निशाने पर ( लघुकथा )

     हड़ताल खत्म होने के पश्चात  आज सभी शिक्षाकर्मी  स्कूल आये थे  । कार्यभार ग्रहण  करने की
औपचारिकताएं पूरी कर वे बैठे ही थे ..। अब बच्चों
की पढ़ाई की चिंता हो रही थी.. शशि ने कहा वैसे
कोर्स तो लगभग 90% पूरा ही है... जल्दी से खत्म
कर रिवीजन करवाना है । बाकी सभी अपने - अपने
विषय के बारे में बताने लगे थे... नियमित व्याख्याता
पता नहीं क्यों भरे बैठे थे...शुरू हो गए ।  कोर्स पूरा
हो गया है फिर भी नुक़सान तो हुआ ही है ना ...आप
लोगों को अपनी जिम्मेदारी समझना चाहिये , बार - बार
हड़ताल करने चले जाते हैं ...बस वाद - विवाद शुरू हो
गया ... स्टॉफ का  वातावरण  बोझिल हो चला था ।
किसी तरह ...छोड़ो , जाने दो कहकर बहस को टाला
गया ।
        दूसरे दिन समाचार - पत्रों में स्कूल का समय एक
घण्टा  बढ़ने का आदेश प्रकाशित हुआ था जिसने आग
में घी डालने का काम किया था । प्रार्थना के बाद ही एक मैडम शुरू हो गई... तुम लोग हड़ताल पर थे तो
एक घण्टा तुम  ही लोग अतिरिक्त कक्षा लेना , हम लोग क्यों जल्दी आएंगे ...... वहाँ पंडाल पर बातें चलती रहती थीं कि जहाँ एक भी शिक्षक नहीं हैं वहाँ एक - एक नियमित व्याख्याता को प्रतिनियुक्त किया गया है  ,उसी हिसाब से शशि के  मुँह से अनायास ही निकल गया ...
नियमित व्याख्याता भी तो कुछ नहीं पढ़ाये हैं  इतने दिन ..बस , फिर क्या था ...सभी व्याख्याता गण भड़क
उठे ... एक ने तो हद ही कर दी - हाँ , हम तो कुछ पढ़ाते ही नहीं ...तुम्ही लोग पढ़ाते हो  , एक ही लाठी से सबको नहीं हांक सकते  , मैं भी तुम लोगों को बोल सकती हूँ कि शिक्षाकर्मी कुछ नहीं पढ़ाते - लिखाते
आदि आदि ....मैंने भी क्या बला मोल ले ली..सोचते हुए वह अपनी कक्षा में चली गईं  । वहाँ बच्चों से बात
करने पर मालूम हुआ कि वह मैडम जो शशि  पर इतना
भड़क रही थी... पूरे बारह दिनों में वह एक भी पीरियड
उन्हें पढ़ाने नही आई थीं.... उन्हीं के शब्दों में "मैडम ,हमने इंग्लिश का ई भी नहीं पढ़ा "....सुनकर
समझ में आ गया था , वह मोहतरमा इतनी क्यों
भड़क गई थी ...अनजाने में ही सही  , तीर सही निशाने
पर जा लगा था ।

  स्वरचित --- डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़

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