Saturday, 16 December 2017

शिशु चाँद🌃

रातों को जागता ...
अठखेलियाँ करता...
थका - हारा चाँद.....
अब सोने को है ,
उनींदी पलकों पर उसकी
रख दिये हैं बादलों ने फाहे..
आसमानी चादर ओढ़े ..
क्षितिज में बंधे उसके झूले को
हँसकर झुला
है उषा ने
और लग गई है अपने काम पर....।

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