रश्मि और साक्षी बहुत अच्छी दोस्त हैं । आज ही उनका बारहवीं परीक्षा का परिणाम आया ...उन दोनों
ने प्रथम श्रेणी के अंक लेकर परीक्षा उत्तीर्ण की थी और भविष्य की योजना बनाने लगे थे । मैं तो गणित लेकर
स्नातक करूँगी फिर सिविल सेवा की तैयारी करूँगी ...
रश्मि ने चहकते हुए कहा पर साक्षी गुमसुम सी न जाने
किन ख्यालों में खोई हुई थी.... अरे भाई ऐसी कौन सी बात हो गई कि तुम मुँह लटकाए बैठी हो । रश्मि ,तुम कितनी भाग्यशाली हो कि अपने भविष्य के बारे में स्वयं निर्णय ले सकती हो ...हमारे यहाँ भी काश ऐसा होता । हमारे परिवार में बड़े - बुजुर्ग ही फैसला लेते हैं । आगे पढ़ने का तो मैं सोच ही नहीं सकती चाहे कितने भी अच्छे अंक आयें । एक - दो साल में मेरी भी शादी हो जायेगी मेरी दीदी की तरह । " अरे इतनी भी क्या जल्दी है शादी की ? कहीं भाग तो नहीं जाओगी । अभी तो अपना कैरियर बनाने का समय है "-रश्मि ने कहा ।
तुम नहीं समझोगी रश्मि ....हमारे यहाँ सुरक्षा की दृष्टि से जल्दी शादी करना जरूरी समझा जाता है । अधिक उम्र होने से ठीकठाक लड़के नहीं मिलते , शादी
होने में दिक्कत आती है , उनकी यही सोच है...काश मैं भी अपने पैरों पर खड़ी हो पाती , अपनी स्वयं की कोई पहचान बना पाती । आत्मनिर्भर होने की सन्तुष्टि चेहरे पर एक अलग ही चमक ला देती है । अपनी मेघा मैडम के चेहरे में कितना आकर्षण है ... व्यक्तित्व अधूरा है शिक्षा के बिना । नौकरी न भी करें तो इतनी पढ़ी - लिखी तो होना ही चाहिए कि अपने बच्चे को पढ़ा सकें ,अपने परिवार की सही रूप से देखभाल कर सकें ।
" तुम यह बात अपने पापा को समझा नहीं सकती..
परम्परा के नाम पर होती आ रही यह गलती दोहराई जाये कोई जरूरी तो नहीं , वैसे भी तुझमें और तेरी दीदी में आठ साल का अंतर है ... समयानुसार परिवर्तन होते हैं ....शायद वे भी समझ जाएं और तुझे आगे पढ़ने को मिल जाये "-- रश्मि ने कहा । सही कह रही है तू , एक कोशिश तो करनी ही होगी ,देखो क्या होता है ..कहते हुए साक्षी अपने घर जाने के लिए उठ खड़ी हुई थी ।
बाद में साक्षी का फोन आया था , आगे पढ़ने का उसका प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया गया था । उसके दादाजी की ही घर में चलती थी अब भी । चार बेटों के संयुक्त परिवार को अपने कड़े अनुशासन से जोड़ कर रखा था उन्होंने... पर अब तो सभी शिक्षा का महत्व समझने लगे हैं क्या गाँव और क्या शहर । उनका बहुत बड़ा फार्म हाउस था जहाँ वे सब्जी , फल उगाते थे ...
साक्षी के पिता एक सम्पन्न कृषक थे...कृषि में नये
प्रयोग करने के लिए उन्हें सम्मानित भी किया जा चुका था । कुछ दिनों बाद साक्षी अपने पिता के साथ मेरे घर
आने वाली थी..तब तक कॉलेज में प्रवेश - प्रक्रिया प्रारंभ हो जायेगी... मैंने सोच लिया था कि मैं साक्षी के
पापा से बात करूँगी तो वे जरूर मानेंगे..पता नहीं क्यों
पर मुझे अपनी तर्कशक्ति पर विश्वास था ।
उस दिन मम्मी बड़ी प्रसन्न होकर मुझे अपना किचन गार्डन दिखाने ले गई थी ...मम्मी को गार्डनिंग का बहुत शौक था पर हमारे घर में जगह नहीं होने के कारण गमलों में ही सब्जियाँ उगाकर खुश हो लिया करती थीं ।
किसी गुलाब में पहला फूल खिला हो या सेवंती के नये
शेड्स आये हों ...मम्मी के चेहरे पर उन फूलों की चमक रोशन हो जाती..मेरी भी पेड़ - पौधों में रुचि देखकर मम्मी अपने बगीचे के हर बदलाव की खुशी मुझसे बाँटती । उस दिन वह मुझे गमले में मीठे नीम की टहनी से लगा पतला से करेला दिखा रही थी... उस मरियल सी बेल में आठ से दस फल लगे हुए थे... मम्मी खुश हो रही थीं कि मेरे लायक फल हो जायेगे , तुम लोग तो कोई खाते ही नहीं । उफ्फ... कड़वा करेला यह भी कोई खाने की चीज है ।
साक्षी को काफी दिनों के बाद देखकर अच्छा लग रहा था । कुछ देर कुशल - क्षेम पूछने के बाद मैं साक्षी और उसके पापा को घर घुमाने ले गई ...जब किचन गार्डन में हम पहुँचे , मैंने उन्हें वही करेले का पौधा दिखाया - अंकल देखिये , यह पौधा...इसमें इतने सारे फल लगे हैं पर ये बढ़ नहीं पा रहे हैं... बस छोटे में ही पककर गिर जा रहे हैं ...मम्मी तो बड़ी खुश हो रही थीं कि उनके लायक फल आ जायेंगे । अंकल हँसते हुए बोले- अरे बेटा जी , अभी तो यह पौधा पूरी तरह तैयार ही नहीं है फलने के लिए... पहले इस पौधे को थोड़ा मजबूत हो जाने दो..तब फल लगेंगे तो वे अच्छे आकार के स्वस्थ फल होंगे... हाँ अंकल जी , मैंने साक्षी को देखते हुए कहा ... यही तो मैं भी कहना चाह रही हूँ आपसे , क्या साक्षी का तन और मन तैयार है उन बदलावों के लिए जो आप उसके जीवन में लाना चाहते हैं । मुझे और अधिक कहने की आवश्यकता नहीं हुई...
उस करेले के नन्हे पौधे ने बहुत कुछ कह दिया था । अंकल कभी करेले को और कभी साक्षी को देखते रहे और मेरी ओर देखकर मुस्कुरा दिये मानो वे सब समझ गए हों । साक्षी की शॉपिंग , मेरे घर आने का बहाना और उन्हें मेरा घर घुमाना... इन सारी बातों का केंद्रबिंदु
साक्षी की हो रही असमय शादी रुकवाना था । वैसे मैं वाद - विवाद प्रतियोगिता की चैंपियन थी..ऐसे अजीब-अजीब उदाहरण देकर ही अपने विरोधियों को मात देती थी । उस दिन उस कड़वे करेले ने रंग जमा ही दिया था...चलते वक्त अंकल ने कहा-" बिटिया , कॉलेज जाओगी तो एक और प्रवेश फॉर्म ले आना साक्षी के लिए भी । " अंकल का इतना कहना था कि हम दोनों सखियाँ खुशी से उछल पड़ी थी ।अरे हाँ ...आपको बता दूँ , अब मुझे करेला उतना भी कड़वा नहीं लगता क्योंकि अब मैं उसकी विशेषताएं भी जान गई हूँ ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़😄😄
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