साल का अंतिम दिन...
गुजरते हुए जोड़ जाता है ,
कुछ और अनुभव , बीते पल
यादों की पोटली में ...
पथ में मिले कई साथी ...
किसी ने हाथ थामा ,
किसी ने पीछा छुड़ाया ..
बिसरे कुछ , कोई याद रहा..
हुआ बर्बाद ,कोई आबाद रहा ,
कभी हुए सम्मानित ...
कहीं हुए उपेक्षित ,
स्नेह मिला कहीं...
कहीं मिला आशीष ...
लोग मिले बुरे - भले ,
कुछ दिलजले ,कहीं दिल मिले..
खोया -पाया , क्या मिला ,
सन्तुष्ट कोई ,किसी को गिला...
समय की धार प्रबल ,
जीवन को देता सम्बल..
सुख - दुख बहा ले जाता ,
भाव समदृष्टि दे जाता....
दिन बीत गए , कुछ रीत गये ,
हुए पुराने , कुछ दोस्त नये...
खट्टी - मीठी यादें ,
भूली - बिसरी बातें ....
सुहाने दिन बचपन के,
यौवन की मीठी रातें...
चेहरों की झुर्रियां या ,
अनुभव की खिड़कियां....
माँ की लोरियाँ ,
पिता की झिड़कियाँ .....
किसी बच्चे की जेबों की तरह,
अनगिनत उपयोगी ...
अनुपयोगी चीजों से भरी ,
यह यादों की पोटली...
भरती जाती निरन्तर ,
बीतती जाती उम्र...
पर रीता मन का गागर ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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