खुशियों को न यूँ सरेआम करना ,
नज़र लग जायेगी जमाने की ।
जज्बातों का तुम न इजहार करना ,
साँसे थम जायेगी दीवाने की ।
मुलाकातों को न यूँ बदनाम करना ,
नज़र पड़ जायेगी निगहबानों की ।
किसी से नजरें न चार करना ,
राह मिल जाएगी मयखाने की ।
लबों को खामोशी से सी लेना ,
बात खुल जायेगी अफ़साने की ।
हथेलियों से शमा को बचाये रखना ,
उम्र बढ़ जायेगी परवाने की ।
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डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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