Tuesday, 30 January 2018

मुक्ति ( लघुकथा )

बहुत दिनों बाद आज संध्या  खुलकर मुस्कुराई थी....शायद कुछ उलझनें दूर हो गई थीं  जिनमें उलझकर वह हँसना भूल गई थी । उसकी  चाचीसास अपनी बहू नेहा का गर्भपात कराने शहर आई थी..कारण था उसका जल्दी गर्भधारण करना । उसकी पहली बेटी अभी एक वर्ष की ही हुई थी ..अब जो भी हो , नेहा इसके पक्ष में नहीं थी । उसने कहने की कोशिश भी की थी...कैसे भी करके सम्भाल लेंगे , पर सासु माँ अपना काम नहीं बढ़ाना चाहती थी  ...इतने कम अंतर में दूसरा.. ।
    देर हो जाने और साइड इफेक्ट्स के बारे में बताते हुए  डॉक्टर ने भी मना कर दिया था  , अब कुछ नहीं हो सकता । ओह ! नेहा को अपराधबोध से  मुक्ति मिल गई थी और संध्या को  उससे मिलने आने - जाने वालों की परेशानियों से ।

स्वरचित --- डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़

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