गागर में सागर को ,
भर नहीं सकती ।
प्रिय तुम बिन मैं ,
रह नही सकती ।।
जीवनरूपी दीप की ,
ज्योति तुम ही हो ।
भावप्रवण नयन की ,
दीप्ति तुम ही हो ।
बिना तेरे जीवनपथ पे ,
चल नहीं सकती ।।
सुरभित गृहपुष्प के ,
मकरन्द तुम ही हो ।
कोकिल सी प्यारी तान के,
छंद तुम ही हो ।।
बिना समीर वीणा से ,
रागिनी निकल नहीं सकती ।।
मन - मन्दिर के देव तुम ,
करती हूँ पूजा मैं ।
तुम्हारे स्नेह - नीर से ,
पोषित नीरजा हूँ मैं ।
स्पर्श - उष्णता के बिन ,
हरगिज खिल नहीं सकती ।।
तुम्हारे प्रेम -मन्दिर की ,
फहरती ध्वजा हूँ मैं ।
विश्वास शिखर से उपजी ,
अविचल शैलजा हूँ मैं ।
काल के आघात से ,
जो बिखर नहीं सकती ।।
प्रिय तुम बिन ,
जीवित रह नहीं सकती ।
तुम्हारे प्रेम को ,
शब्दों में कह नहीं सकती ।।
**********************
डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
आसमान में उड़ते बादलों की तरह भाव मेरे मन में उमड़ते -घुमड़ते रहते हैं , मैं प्यासी धरा की तरह बेचैन रहती हूँ जब तक उन्हें पन्नों में उतार न लूँ !
Sunday, 28 January 2018
प्रिय तुम बिन
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment