Tuesday, 30 January 2018

पीड़ा

दुनिया में आकर भी न आ पाती ।
जीने से पहले ही मरने की सजा पाती ।
माँ की कोख में सिकुड़ती , सकुचाती ।
बेटी  ! काश ! तुम जन्म ले पाती ।।
आशाएं पालती , सपने सँजोती ।
स्नेह लुटाती , घर बसाती  ।
अनजानों को अपना बनाकर ,
किसी के दिल का अरमान बन जाती ।।
बेटी ! काश  ! तुम जन्म ले पाती ।।
काँटे चुनती , फूल बिछाती ।
सबकी  राहें सुगम बनाती ।
अपना खून - पसीना बहाकर ,
इस उपवन का सौरभ बन जाती ।।
बेटी ! काश ! तुम जन्म ले पाती ।।
हौसला देती , प्रेरणा बनती ।
सृजन करती , पोषिका कहाती ।
अपने परिश्रम से धरा  को ,
उपजाऊ , पावन कर जाती ।।
बेटी ! काश ! तुम जन्म ले पाती ।।
शिक्षा पाती , सूझ बढ़ाती ।
सपनों को साकार कर पाती ।
सफलता की ऊँची उड़ान भर ,
माता - पिता का मान बढ़ाती ।।
बेटी ! काश ! तुम जन्म ले पाती ।।
मुस्कुराती , खिलखिलाती ।
खुशियों का गागर छलकाती ।
अपने  नाजुक कदमों से ,
इस जहां को पावन कर जाती ।।
संसार की रौनक बढ़ जाती ।।
बेटी ! काश ! तुम जन्म ले पाती ।।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़  🙅🙅

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