मेरे कल्पवृक्ष हो तुम
कहीं पढ़ा था.. सुना था..
एक कल्पवृक्ष होता है ।
जिसकी छाया में बैठ कर
सोचने से पूरी होती है ,
मन की सारी इच्छाएँ ।
उन कही सुनी बातों का
साकार रूप हो तुम ...
मेरे कल्पवृक्ष हो तुम ।।
आई थी लिये मन में..
कई अरमान ,कुछ ख्वाहिशें ।
जिंदगी को भरपूर ...
जी लेने की तमन्नाएं ।
गमों की नमी सोंख ले ...
वो सुहानी धूप हो तुम...
मेरे कल्पवृक्ष हो तुम ।।
सुख - दुख के साथी ,
मिलाया कदम से कदम ।
बसाई दुनिया प्यार की ,
मेरे प्यार ,मेरे हमदम ।
दीवानी हूँ तुम्हारी ,
बहुत खूब हो तुम....
मेरे कल्पवृक्ष हो तुम ।।
पूरी हुई ख्वाहिशें ...
कई अधूरी इच्छाएँ ,
मनचाहा करने दिया ,
मूर्त हुई भावनाएँ ।
चमन को महका दे ,
वो पुष्प गुच्छ हो तुम...
मेरे कल्पवृक्ष हो तुम ।।
तुम्हारा सम्बल ,मेरा विश्वास,
दोस्त पाया एक बहुत खास ।
प्रेमरस से भीगा आँगन...
अपनेपन का सोंधा एहसास ।
मैं रात्रि की छिटकी चाँदनी ,
चाँद का निखरा स्वरूप हो तुम ,
मेरे कल्पवृक्ष हो तुम ।।
**********
डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
No comments:
Post a Comment