Tuesday, 2 January 2018

प्रेम में जीना सीखें

प्रेम में जान देना नहीं ,
वेदना सहकर जीना सीखें ।
समस्याओं से डरना नहीं ,
जूझकर  निकलना सीखें ।।

प्रेम न हो मछली की तरह,
मर जाती  पानी के बिना ।
सीखो चकोर से प्रेम - मन्त्र ,
प्रिय को देखकर जीना ।
अमृत बन जायेंगे अश्रु ,
जाम विरह के पीना सीखें ।

अवसादों के बन्द घेरे ,
हताशा के गहन अंधेरे ।
दिल के जख्म गहरे ,
आँसू पलकों में ठहरे ।
सूरज की तरह अंधेरों से ,
लड़कर निकलना सीखें ।।

धोखे भरे ये मंजर ,
प्रियतम बने सितमगर ।
विश्वास के सीने में ,
बेवफाई के ख़ंजर ।
दर्दों के समंदर से ,
तैरकर निकलना सीखें ।।

स्वरचित  - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़

No comments:

Post a Comment