प्रेम में जान देना नहीं ,
वेदना सहकर जीना सीखें ।
समस्याओं से डरना नहीं ,
जूझकर निकलना सीखें ।।
प्रेम न हो मछली की तरह,
मर जाती पानी के बिना ।
सीखो चकोर से प्रेम - मन्त्र ,
प्रिय को देखकर जीना ।
अमृत बन जायेंगे अश्रु ,
जाम विरह के पीना सीखें ।
अवसादों के बन्द घेरे ,
हताशा के गहन अंधेरे ।
दिल के जख्म गहरे ,
आँसू पलकों में ठहरे ।
सूरज की तरह अंधेरों से ,
लड़कर निकलना सीखें ।।
धोखे भरे ये मंजर ,
प्रियतम बने सितमगर ।
विश्वास के सीने में ,
बेवफाई के ख़ंजर ।
दर्दों के समंदर से ,
तैरकर निकलना सीखें ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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