कुम्हार मिट्टी के बर्तन पकाते हुए जानता है कि जितना समय बर्तन को मजबूत बनने में लगेगा , उतना
तो लगना ही है । वह चाहे तो भी आंच तेज करके एक
मजबूत बर्तन वक्त से पहले नहीं बना सकता । वही बात
माली के लिये भी है । वह भी जानता है कि पौधे को जड़ जमाने में जितना वक्त लगता है , वह लगेगा । खींचकर पौधे को वक्त से पहले पेड़ नहीं बनाया जा
सकता । बच्चों के मामले में भी कुम्हार और माली बनना जरूरी हो जाता है । यदि उन्हें समय पूर्व ही आप
बड़ा बनाने की कोशिश करेंगी , तो यह उनके साथ अन्याय ही होगा । बच्चों के मुख से बड़ी बातें बिल्कुल
भी अच्छी नहीं लगतीं या यूं कहें कि किसी बच्चे के शरीर में किसी वयस्क का मस्तिष्क रोपना , उनके शारीरिक और मानसिक विकास का संतुलन बिगाड़ने
जैसा है ।
अधिकांश घरों में देखने को मिलता है कि बच्चे अपनी उम्र से ज्यादा और बड़ी - बड़ी बातें करते हैं ।
अभिभावक भी उनकी इस आदत को भोलापन , नादानी और बचपना निरूपित कर टाल देते हैं । एक
बच्ची मुँह बनाकर पड़ोस वाली आंटी को भला - बुरा
कह रही थी - " वह हमें अपने बगीचे में खेलने नहीं देती " और न जाने क्या - क्या । उसे बोलता देख उसकी माँ
का चेहरा निगाह के सामने आ गया । जब भी उनसे मिलो , वह अपनी सास - ननद की शिकायतों का पिटारा लिये ही मिलती थीं । उनकी बच्ची में ऐसे गुण
विकसित होने पर रत्ती भर भी शक नहीं होना चाहिये।
इसी तरह कुछ समय पहले एक सहेली की बेटी के जन्मदिन समारोह में जाना हुआ । अचानक काम आ
जाने की वजह से देर हो गई । ज्यादातर मेहमान जा
चुके थे और सहेली की बेटी मिले तोहफ़ों को खोल
रही थी । पसन्द न आने वाले उपहारों को एक तरफ
पटकते हुए उसने कहा - 'ये सब सस्ते और घटिया हैं ।'
माँ का अपनी बेटी की इस आदत पर न टोकना , आश्चर्य
में डाल रहा था जबकि यदि उन्होंने बच्ची को उपहार
की कीमत नहीं , बल्कि देने वाले की भावना का आदर
करना सिखाया होता , तो वह ऐसा व्यवहार नहीं करती।
* अंकुर फूटता है घर से *
बच्चों में दूसरों , खासतौर पर अपने से बड़ों
के प्रति भावनाओं का संचार परिवार से ही होता है ।
परिवार के सदस्यों के बीच हो रही बातचीत से वे तय
करते हैं कि उन्हें किसके प्रति कैसी भावना रखनी है या
बनानी है ? पड़ोसी , रिश्तेदार या अन्य के प्रति उनके
द्वेष का अंकुर घर से फूटता है ।
समय रहते ध्यान नहीं देने पर अंकुर विशाल वृक्ष
बन जाता है , जिसे मन - मस्तिष्क से बाहर निकलने
में काफी मुश्किलें आती हैं इसलिए घर में बातचीत
करते हुए दोस्तों , पड़ोसियों या रिश्तेदारों के लिए विपरीत टिप्पणियां करते हुए आपको अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए , क्योंकि हमारी नकारात्मक
बातें बच्चों के मन में विषबेल का बीज रोप सकती हैं ।
* बचपन बचपन ही रहे *
कुछ बच्चों को घर से ही यह समझाया जाता है
कि अब वे बड़े हो गए हैं । खासकर जब घर में दो या
ज्यादा बच्चे हों । उन्हें बड़े होने का अहसास कुछ इस तरह से कराया जाता है कि वे अपना बचपन खो देते
हैं । ' तुम बड़े हो , यदि तुमने ऐसा किया तो छोटा भी
करेगा । तुम्हें ध्यान रखना चाहिए ।' ऐसे वाक्य बच्चों में
अनचाहा दबाव पैदा कर देते हैं , जिसमें दबकर वे अपनी कोमल भावनाओं को परिपक्व बनाने में लग
जाते हैं । बच्चे को समझदार बनाना एक बात है , लेकिन उसे घर की स्थिति का दयनीय प्रदर्शन करना
पड़े , कम से कम ऐसी सीख तो उन्हें न दें । बच्चों को
बच्चा ही रहने दें , उन्हें असमय बड़े होने के लिए तैयार
न करें । पढ़ाई , खेलना - कूदना और खुलकर जीना
उनकी उम्र का तकाजा है , न कि समय से पहले
समझदार बनना । बच्चों के विकास की उम्र और
स्थितियाँ निश्चित है । जब भी हम उन्हें असमय बड़ा बनाने का प्रयास करते हैं , तो उसके नतीजे व्यवहार
और विकास के रूप में भविष्य में सामने आते हैं । उनमें
संस्कार , व्यवहार - ज्ञान और सभी का समान रूप
से आदर करने का बीज बोएँ अन्यथा असमय परिपक्वता का बोझ उनसे उनका बचपन छीन लेगा।
* रोक सकती हैं आप.*
माँ बच्चे की प्रथम शिक्षक होती है , इसलिए बच्चे
के मन - मस्तिष्क में विषबेल का अंकुरण रोकना , आपके लिए सहज होगा । आपका कार्य - व्यवहार बच्चे को सर्वाधिक प्रभावित करता है । आपके जरिए
ही बच्चे के अंदर संस्कार पोषित होते हैं अतः उनके
समक्ष अशिष्ट भाषा का प्रयोग , अनर्गल वार्तालाप , निंदा इत्यादि करने से बचें । इसके स्थान पर बच्चे के
समक्ष अपने शिष्ट व्यवहार और बड़े - बुजुर्गो को आदर
देने का उदाहरण प्रस्तुत करें ताकि भविष्य में वे आपको भी मान - सम्मान दें ।
* रिश्ता न थोपें न दूर करें.*
कुछ लोगों का भेदभावपूर्ण रवैया बालपन को
चोटिल करता है । पड़ोस की एक बच्ची का ही उदाहरण लें । वह बच्ची अपनी दादी के व्यवहार से
दुखी थी । उसके शब्दों में - ' मेरी दादी मुझे बिल्कुल
भी अच्छी नहीं लगती । वह मुझे कभी कोई उपहार
लाकर नहीं देतीं , लेकिन बुआ के बच्चों को देती हैं ।
वे उन्हें ही ज्यादा प्यार करती हैं , मुझे नहीं ।' छोटी
- सी बच्ची के मन पर दादी के व्यवहार ने काफी
चोट पहुंचाया था । घर के बच्चों में भेदभाव न बरतें और
न ही किसी को बरतने दें । यदि आपकी नजरों में
परिवार में कोई ऐसा किरदार है भी , तो उनसे इस बारे में
बात करें । यह भी कोशिश करें कि अपनी पसंद / नापसन्द बच्चों पर न थोपें । दादा - दादी , बुआ , चाची
इत्यादि रिश्तों से बच्चे को दूर न करें , खासकर तब , जब आप किसी वजह से इन्हें नापसन्द करती हों ।
समझदार होने पर वे स्वयं चयन करना सीख जाएंगे ।
रिश्तों के ताने - बाने , विवाह व दूसरे आयोजनों में आपकी सहभागिता बच्चे में सामाजिकता का भाव
पैदा करती है और अनायास ही उनमें धैर्य , सहयोग ,
सामंजस्य और समझौते जैसे गुणों का विकास होता है ।
माना कि आसपास उपस्थित कई लोग आपकी
अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरते , उनकी स्वार्थी प्रवृत्ति हमें उनके खिलाफ बोलने के लिए मजबूर करती है ,
लेकिन बच्चों के सामने क्यों ? बचपन मासूम , अनमोल
और निश्चिंत होता है , उन्हें विरासत में चिंता , कटुता ,
वैमनस्य , निंदा और बदले की भावना हम क्यों दें ? उनके निश्छल और पवित्र मन को कुविचारों से क्यों भरें? क्या समझदारी रोपने का यह सही समय है ? इन
प्रश्नों के उत्तर खोजें , बच्चों के साथ हो रहे या किये
जा रहे आपके व्यवहार में थोड़ा परिवर्तन जरूर आएगा। वे कच्ची मिट्टी हैं , उन्हें समय के हाथों परिपक्व होने दें , तभी उनके व्यक्तित्व का सम्पूर्ण विकास हो पायेगा ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़ ☺️☺️☺️
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