Saturday, 5 August 2017

* तमसो मा ज्योतिर्गमय *

  कई बार जिंदगी में आने वाली कठिनाइयाँ हमें दुख और निराशा के गहन अंधकार में डुबा देती हैं । ऐसे
वक्त मन में आस्था का दीप जलाने से मन रोशन हो
जाता है । सिक्के की तरह हार- जीत , सुख - दुःख ,
आशा - निराशा , सफलता - असफलता , पाना - खोना
जिन्दगी के पहलू हैं जिनका हमें अक्सर सामना करना
पड़ता है ।इंसान इन परिस्थितियों से जूझता ..संघर्ष
करता है व उन पर विजय पाता है । कुण्ठा , तनाव ,
हताशा , क्रोध , हिंसा रूपी  अंधेरा मनुष्य को उसके
लक्ष्य से भटकाता  है । मानसिक तनाव इतना बढ़ जाता
है कि लोग जिंदगी से किनारा कर लेते हैं जबकि सकारात्मक , नैतिक गुण हमें इन अंधेरों से लड़ने की
प्रेरणा , उत्साह , साहस प्रदान करते हैं और अपनी
बुराइयों पर जीत पाने में हमारी मदद करते हैं ।
       हर अंधेरी रात के बाद सुबह का सूरज अवश्य
निकलता है। उसी प्रकार दुख के बाद सुख प्राप्त होता
है । लंबे प्रयास के बाद मिली सफलता मन को उत्साह
व हर्ष से रोशन कर देती है । देवकी और वरुण का
दाम्पत्य टूटने के कगार पर था क्योंकि वरुण को नशे
की लत हो गई थी । देवकी ने कई बार समझाया , बच्चों
के मन पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव का भी वास्ता दिया परन्तु वरुण पर कोई असर ही नहीं पड़ा । हारकर उसने
अलगाव का निर्णय ले लिया तब जाकर वरुण की नींद
टूटी । उसने  देवकी के समक्ष सुधरने की इच्छा व्यक्त
की । देवकी को अंधेरे में उम्मीद की एक किरण दिखाई दी । दोनों ने मिलकर प्रयास किया । वरुण का दृढ़ संकल्प और देवकी के धैर्य व विश्वास ने हवा का रुख
बदल दिया । अब वे सुखी जीवन व्यतीत कर रहे हैं ।
             सूरजमुखी का फूल हमेशा सूरज की ओर देखता है । शाम होने पर भले ही मुरझा जाता है । लेकिन पुनः सूरज की ऊष्मा पाकर ऊर्जान्वित हो उठता
है । उसी प्रकार हम हमेशा उजाले की ओर अपना रुख करें । निराशा , दुःख , असफलता रूपी शाम की अवधि
अत्यल्प होती है । हमारे जीवन में भी सुखरूपी सूरज का उदय होगा , मन में विश्वास बनाये रखें ।
        पिता की मृत्यु के बाद कविता के घर की हालत
बदहाल हो गई थी । कई बार उसके पास स्कूल की फीस भरने के पैसे नहीं होते थे । माँ ने सिलाई करके
जैसे - तैसे उसे पढ़ाया । पढ़ाई के साथ - साथ कविता
ने एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाना शुरू किया । बाद में
अनुभव के आधार पर उसकी सरकारी नौकरी मिल गई ।
नौकरी मिलने के बाद उसने सब कुछ सम्भाल लिया ।
छोटे भाई - बहनों को पढ़ाया , उनका भविष्य सँवारा ।
कई बार निराशा जनक परिस्थितियां सामने आई ....
पर उसी तरह जैसे बदली कुछ देर के लिये सूरज को
ढंक लेती है , आँखे जरूर बरसीं परन्तु कर्तव्यपथ से
कदम नहीं डिगे । वर्तमान सुविधाभोगी युग में सफल
जीवन के अलग मायने हैं । व्यवहार में मूल्य को तरजीह
देने वाले अपने ही कई बार मन को आहत कर जाते  हैं ।महंगाई और गलाकाट प्रतियोगिता के दौर में इंसान
विषाद और नैराश्य के दलदल में फँस जाता है । ऐसे
में यदि मन में आस्था के दीप जला लें तो अंधेरों से
निकलना  आसान हो  जाएगा ।
      तो क्या आप भी तैयार हैं आशा  , उत्साह और
विश्वास के साथ मन के अंधेरों  से लड़ने के लिए ?तो अपने जीवन के कड़वाहट भरे पलों की गठरी बनाकर
मानस पटल से उतार फेंकिए और ' तमसो मा ज्योतिर्गमय ' कहते हुए चलें उजालों की ओर ।

   ☺️☺️ स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग ,छत्तीसगढ़        

No comments:

Post a Comment