" सौम्या.... तुम अभी तक तैयार नहीं हुई , तुम्हारे पापा कब से इंतजार कर रहे हैं "- सौम्या को बिस्तर पर
पड़ी देखकर राजी ने उसे आवाज लगाई । पास जाकर उसने जब सौम्या का चेहरा ऊपर उठाया तो चौंक पड़ी- अरे....यह क्या ? तुम रो रही हो ..पगली..तुम अपने घर जा रही हो , अपने पापा - मम्मी के पास...यह तो बहुत खुशी की बात है । होस्टल में कोई
हमेशा के लिए थोड़ी आता है... अपनी पढ़ाई पूरी करके
सभी अपने घर जायेंगे , फिर कल मैं भी तो जा रही हूँ ...चुप हो जाओ प्लीज...।
" राजी , तुम मुझे बहुत याद आओगी " - कहकर
सौम्या उससे लिपटकर रो पड़ी ।
" मुझे भी तुम्हारी कमी महसूस होगी सौम्या , दो वर्ष
हम लोग एक कमरे में साथ रहे..ये पल याद तो आएंगे
ही...पर तुम दुखी मत हो , हम लोग एक -दूसरे से बात
करते रहेंगे और अधिक याद आएगी तो मिल भी लेंगे
क्यों ठीक है ना...अच्छा अब जल्दी से तैयार हो जा , अंकल गेस्ट रूम में बैठे हैं । "
बड़ी मुश्किल से राजी ने सौम्या को चुप कराया ।
उसे भी दुख हो रहा था सौम्या से अलग होते हुए...पर
वह जानती थी कि वह रो पड़ी तो सौम्या को संभालना
मुश्किल हो जायेगा ।
छात्रावास छोड़कर लौटती हुई सौम्या को लग रहा
था जैसे वह अपना मन राजी के पास ही छोड़कर जा रही है लेकिन वह अपने साथ लेकर भी तो जा रही है
जीवन जी के ढेर सारे खट्टे - मीठे अनुभव और राजी का
प्यार ।
उसे होस्टल का पहला दिन याद है जब वह अपने कमरे में आते ही फूट - फूट कर रो पड़ी थी । पहली बार मम्मी - पापा को छोड़कर बाहर निकली
थी , हर बात में उनकी याद आती थी । छोटे शहर से
आने के कारण उसके मन में थोड़ी झिझक भी थी ...
ऊपर से होस्टल में सीनियर दीदियों का तानाशाही व्यवहार और नया - नया माहौल ..इन सबने उसे दुखी
कर दिया था । वह अपने - आपको अकेली महसूस कर
रही थी इसी बीच उसके कमरे में एक और लड़की आई राजी पिल्लै । वह दक्षिण भारतीय थी ...रहन - सहन , भाषा और विचार में भिन्नता होने के कारण कुछ दिन तो
दोनों दूर - दूर ही रहे पर साथ रहते - रहते ये दूरियाँ कम
होते गई ।
राजी सौम्या की हमउम्र जरूर थी पर उसमें अधिक धैर्य और समझदारी थी । सौम्या को शुरू - शुरू
में होस्टल में बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था.. छोटी - छोटी बातों में सीनियर की झिड़की सुनकर उसे लगता
कि वह घर वापस चली जाए..ऐसे क्षणों में राजी उसे
समझाती , ढाढ़स बंधाती ।
छोटे शहर से आई सौम्या को कुछ दिनों बाद बड़े
शहर की रंगीनियाँ और खुलापन आकर्षित करने लगा । उसके कई नए दोस्त बन गए , उसके परिचय का दायरा बढ़ने लगा । अब वह दोस्तों के साथ घूमने - फिरने , मूवी देखने चली जाती ...लेकिन इन सबके पीछे वह अपना असली उद्देश्य भूलने लगी । पढ़ाई के
प्रति उसकी बेरुखी देखकर राजी उसे बहुत समझाती कि इस तरह उसकी लापरवाही ठीक नहीं है पर सौम्या
...उस पर इसका कोई असर नहीं हुआ ।
घर से आये सारे पैसे वह अपने दोस्तों पर ही खर्च
कर डालती । सौम्या को लगता कि उसके दोस्त उसे महत्व देते हैं तो उसे भी उनके लिये कुछ करना चाहिए।
राजी उसे उन दोस्तों से सावधान करती थी कि वे सब
मतलबी हैं , वक्त पर काम नहीं आयेंगे , दोस्त भी सोच -
समझकर बनाना चाहिए । राजी की समझाइश सौम्या को अब टोका - टाकी लगने लगी । " तुम अपने काम से मतलब रखो "- कई बार उसने राजी को कटु शब्द भी कह दिये; पर भला राजी अपनी प्रिय सहेली को पतन की ओर जाते कैसे देख सकती थी , वह हर कदम पर उसे सावधान करती रही ।
परीक्षा की समय - सारणी आने के बाद जैसे सौम्या नींद से जागी । उसने न तो कोई नोट्स बनाये थे
और न ही नियमित रूप से कक्षा में गई थी । उसकी मित्र - मंडली में कुछ लोगों की स्थिति उसी के जैसे थी और जो सजग थे वे अपने नोट्स परीक्षा के समय उसे
कैसे देते ? उन्होंने भी मदद करने से इंकार कर दिया ।
परीक्षा बिल्कुल सिर पर थी और अब अपनी भूल
सुधारने का वक्त भी नहीं था । सौम्या अब तक पढ़ाई में अच्छे अंक लाती रही थी , इस बार कहीं वह फेल हो गई तो मम्मी - पापा को क्या मुँह दिखायेगी । " विपरीत
परिस्थितियों से यदि व्यक्ति संघर्ष नहीं कर सकता तो वह उससे मुँह छुपाने के लिए अंधेरों का सहारा लेता है " , ऐसा ही कुछ सौम्या के साथ हुआ । तनाव और परेशानी से बचने के लिए नशे का सहारा लेकर उसने
अपनी मुश्किलें और बढ़ा ली ।
उसकी जरूरतें बढ़ती देख उसके वे सारे दोस्त उससे किनारा कर गए जिन्हें वह अपना हमदर्द समझती थी । वह सुधरना चाहती थी पर उसे किसी की
मदद और मानसिक सहारे की आवश्यकता थी । वह
अपना दुःख - दर्द राजी को बताना चाहती थी परन्तु
शर्मिंदगी के कारण कह नहीं पाई क्योंकि राजी तो हमेशा उसे उन खतरों से सावधान करती रही.. सौम्या ने
ही उस पर ध्यान नहीं दिया बल्कि उसे कई बार खरी - खोटी सुना दी और उस पर रोक - टोक करने का आरोप
लगाया ।
राजी स्वयं ही उसकी हालत समझ गई । उसने सौम्या का मनोबल बढ़ाया और आर्थिक , शारीरिक , मानसिक हर प्रकार की मदद देकर नशे की दलदल से
बाहर निकलने में अपना योगदान दिया । दृढ़ निश्चय बहुत बड़ा हथियार है जिसके द्वारा मनुष्य कठिनतम
परिस्थितियों से भी बाहर निकल आता है ।
सौम्या को एक बहुत बड़ा सबक मिल गया था
इसलिये वह स्वयं अपने - आपको सुधारने के लिये
कृत संकल्पित थी । अपने दृढ़ विश्वास और राजी के
स्नेह भरे सहयोग के द्वारा उसने अपने - आपको सम्भाल लिया ।
छात्रावास छोड़ने का सौम्या को उतना दुःख नहीं था
जितना राजी से अलग होने का था ,राजी ने जो कुछ उसके लिए किया क्या वह उसे कभी भूल पायेगी ? दो
साल पहले जिसे वह जानती भी नहीं थी उसने उसे एक
नई जिंदगी , एक नई दिशा दी ।
क्या ऐसे भी सम्बन्ध होते हैं जो स्वार्थरहित , जाति - पांति , भेदभाव से परे होते हैं ? कितना प्यारा है यह रिश्ता जो रिश्तों की सीमा में न आकर भी उससे कहीं अधिक ऊँचा और महत्वपूर्ण है । प्यार और सहयोग से
बना यह बन्धन कितना अनोखा है जिसने दो अनजान दिलों को एक कर दिया । नहीं , वह कभी नहीं भूल पायेगी इस रिश्ते को...कभी नहीं टूट सकता यह बन्धन...कभी नहीं ।
☺️☺️ स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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